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Monday, 27 April 2020

गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम
फउलुन फउलुन फउलुन
122 122 122

सजा शान शौकत लबारी।
करे तैं अपन मुँह म चारी।

उहू का मजा जिंदगी के।
जिहाँ लोभ लालच लचारी।

रथे भीड़ भीतर शहर में।
तभो काखरो नइ चिन्हारी।

दुई गज म ठाढ़े महल हे।
कहाँ खेत खलिहान बारी।

चुरे मॉस मछरी घरोघर।
कहाँ साग भाजी अमारी।

परोसी ह जाने नही ता।
हवै फोकटे नाम यारी।

तिजोरी भरे चार पइसा।
नचावत हवै बन मँदारी।

रही जिंदगी में खुशी हा।
पवन पेड़ पानी सुधारी।

करे बर गरब काय हावै।
मिले तन हवै ये उधारी।

खैरझिटिया

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