Total Pageviews

Monday, 27 April 2020

गजल -जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

गजल -जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम
फउलुन फउलुन फउलुन
122 122 122

छली बनके छलबे कभू झन।
बिना काम पलबे कभू झन।1

मनुष अस मया मीत रखबे।
करा कस पिघलबे कभू झन।2

रथे ठाढ़ काँटा डहर मा।
खुला पाँव चलबे कभू झन।3

असत डर कहर खूब ढाते।
हवा देख हलबे कभू झन।4

हवा भर भले देत रहिबे।
करू फेर फलबे कभू झन।5

बिगाड़ा करे तन ठिहा के।।
नसा बर फिसलबे कभू झन।6

जखम देख  के नून घोरे।
दवा कहिके मलबे कभू झन।7

खैरझिटिया

No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...