ग़ज़ल-आशा देशमुख
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
किसानी कमाए गा बनिहार बनके
उठाये जगत ला तैं आधार बनके।
खड़े वो करे हे महल घर अटारी।
सदा दिन गुजारे वो लाचार बनके।
कभू हाथ कटगे कभू गोड़ टूटय।
अपन बोझ ढोये वो बेकार बनके।
धरे हाथ माटी औ माथे पसीना
तपे कारखाना मा अंगार बनके।
मुड़ी ला नवाक़े चले वो निहत्था
करे धार श्रमवीर औजार बनके।
सहे भूख अउ प्यास करथे किसानी।
जगत ला भरे अन्न भंडार बनके।
विपत मा पड़े हे कभू देश दुनिया।
लुटाये मया मान परिवार बनके।
आशा देशमुख
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
किसानी कमाए गा बनिहार बनके
उठाये जगत ला तैं आधार बनके।
खड़े वो करे हे महल घर अटारी।
सदा दिन गुजारे वो लाचार बनके।
कभू हाथ कटगे कभू गोड़ टूटय।
अपन बोझ ढोये वो बेकार बनके।
धरे हाथ माटी औ माथे पसीना
तपे कारखाना मा अंगार बनके।
मुड़ी ला नवाक़े चले वो निहत्था
करे धार श्रमवीर औजार बनके।
सहे भूख अउ प्यास करथे किसानी।
जगत ला भरे अन्न भंडार बनके।
विपत मा पड़े हे कभू देश दुनिया।
लुटाये मया मान परिवार बनके।
आशा देशमुख
वाहहहह!वाहहह!दी
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