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Wednesday 6 May 2020

ग़ज़ल-ज्ञानू बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम

ग़ज़ल-ज्ञानू

बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

अरकान-122  122  122  122

पढ़े हस लिखे हस वृथा ज्ञान मत कर
अपन बुद्धि अउ बल के अभिमान मत कर

कहू दान करना हे भूखा ला कुछु दे
ये मंदिर ये मस्जिद कभू दान मत कर

कभू नानचुक  पद मिलय तोला भाई
इहाँ खुद ला सच छोड़ शैतान मत कर

सदा दूर रहना चुगलखोर मन ले
करय कोनो ओती अपन कान मत कर

अपन काम मा बस मगन रहना संगी
बुराई करय कोनो ता ध्यान मत कर

जनम पाय मनखे दिखा बनके मनखे
अपनआप ला स्वंभु भगवान मत कर

सता झन इहाँ तँय कभू दीन दुखिया
सता के बुरा 'ज्ञानु' पहचान मत कर

ज्ञानु

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