Total Pageviews

Saturday, 2 May 2020

गजल-दिलीप कुमार वर्मा बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम

गजल-दिलीप कुमार वर्मा
बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122

पुराना जमाना बहुत याद आथे।
रहँव जे ठिकाना बहुत याद आथे।

बिहनिया घड़ी मा बजे सात बेरा।
नदी ताल जाना बहुत याद आथे। 

बँधाये रहे भैंस भइसा घरो घर।
ओ गरुवा चराना बहुत याद आथे।

चले रेसटिप खेल संझा गली मा।
घरोघर लुकाना बहुत याद आथे।

मँझनिया मँझनिया रहे संग साथी।
डुबक के नहाना बहुत याद आथे।

कुकुर संग ले के धरे हाथ लाठी।
ओ बन्दर कुदाना बहुत याद आथे।

हवय पेट पीरा बनाके बहाना।
ओ शाला ले आना बहुत याद आथे।   

रखे टोर छीता लुकाये जे भूँसा।
अकेल्ला मा खाना बहुत याद आथे।

खुसर के दुसर के जी बारी बियारा।
ओ खीरा चुराना बहुत याद आथे।

चुराये रहँव एक रुपिया कभू ता।
ददा के ठठाना बहुत याद आथे।

समे पंख बांधे उड़ागे गगन मा।
लड़कपन के गाना बहुत याद आथे।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

1 comment:

गजल

 गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...