छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बहरे मुतकारिब मुसम्मन मकसुर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फऊलुन फ़अल
अरकान-122 122 122 12
उझारत खनत बेर लागे नही।
बुराई गनत बेर लागे नही।।
गरब मा कहूँ चूर राजा रथे।
भिखारी बनत बेर लागे नही।
तने लोहा हर ठोंके अउ पीटे मा।
रबड़ ला तनत बेर लागे नही।।
मिले साधु संगत सहज मा कहाँ।
अधम मा सनत बेर लागे नही।।
मया मीत सत बर लगे दिन अबड़।
लड़ाई ठनत बेर लागे नही।।
बड़े होय तुरते कहाँ बोकरा।
बली बर हनत बेर लागे नही।
सुखी जिंदगी के कठिन सूत्र हे।
विपत मा छनत बेर लागे नही।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
बहरे मुतकारिब मुसम्मन मकसुर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फऊलुन फ़अल
अरकान-122 122 122 12
उझारत खनत बेर लागे नही।
बुराई गनत बेर लागे नही।।
गरब मा कहूँ चूर राजा रथे।
भिखारी बनत बेर लागे नही।
तने लोहा हर ठोंके अउ पीटे मा।
रबड़ ला तनत बेर लागे नही।।
मिले साधु संगत सहज मा कहाँ।
अधम मा सनत बेर लागे नही।।
मया मीत सत बर लगे दिन अबड़।
लड़ाई ठनत बेर लागे नही।।
बड़े होय तुरते कहाँ बोकरा।
बली बर हनत बेर लागे नही।
सुखी जिंदगी के कठिन सूत्र हे।
विपत मा छनत बेर लागे नही।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
वाह वाह
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