गजल-दुर्गाशंकर इजारदार
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
गला फाड़ चिचियात सरकार हावय।
गरीबी हटाये का तैयार हावय।
बहस के करे पेट नइ तो भरय गा ।
बहस छोड़ रोटी के दरकार हावय।।
चुनावी बछर सब कहे मोर तँय अस।
लगे तब हितैशी वो भरमार हावय ।।
घटाटोप पानी गिरय अब नहीं गा ।
बता तो कहाँ पेड़ गा खार हावय ।।
लबर्रा लफंगा भरे हे खचाखच।
कहाँ अब तो सच्चा रे रखवार हावय।।
भुलाये अपन आप मा आज बेटा ।
ददा दाई के बिन तो घरबार हावय ।।
धरम जात मा तो बँटे आज दुर्गा।
ठने आदमी आदमी रार हावय ।।
दुर्गा शंकर इजारदार
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बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
गला फाड़ चिचियात सरकार हावय।
गरीबी हटाये का तैयार हावय।
बहस के करे पेट नइ तो भरय गा ।
बहस छोड़ रोटी के दरकार हावय।।
चुनावी बछर सब कहे मोर तँय अस।
लगे तब हितैशी वो भरमार हावय ।।
घटाटोप पानी गिरय अब नहीं गा ।
बता तो कहाँ पेड़ गा खार हावय ।।
लबर्रा लफंगा भरे हे खचाखच।
कहाँ अब तो सच्चा रे रखवार हावय।।
भुलाये अपन आप मा आज बेटा ।
ददा दाई के बिन तो घरबार हावय ।।
धरम जात मा तो बँटे आज दुर्गा।
ठने आदमी आदमी रार हावय ।।
दुर्गा शंकर इजारदार
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वाह वाह
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