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Thursday 14 May 2020

गजल- अजय अमृतांशु

गजल- अजय अमृतांशु

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
अरकान 122 122 122 122

बने टोर जाँगर तभे दाम पाबे।
सफल होबे तैंहा तभे नाम पाबे।

हवै ब्रज निवासी किशन हा सही मा।
रहै मन में राधा तभे श्याम पाबे।

हवै मनखे सेवा धरम बड़का जानव।
सुवारथ रहै तब कहाँ राम पाबे।

कपट हे सबो कोती संसार मा जी।
बने करबे सेवा परम् धाम पाबे।

शहर कोती झन जा कमाये धमाये।
अपन गाँव मा तैं बने काम पाबे।

अजय अमृतांशु

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