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Wednesday, 13 May 2020

गजल- अजय अमृतांशु बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम

गजल- अजय अमृतांशु

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
अरकान 122 122 122 122

जमाखोरी मनखे ह काबर करत हे।
बने हावै कानून नइ गा डरत हे।

अभी गरमी आये कहाँ हे बतावव।
बिना पानी मनखे तभो ले मरत हे।

हमर देश आबादी बाढ़े हवय जी।
बिना काम मनखे घरे मा सरत हे।

नशा नाश कर दिस सबो के जवानी।
बचे हाड़ पछताय आँसू झरत हे।

पढ़ा के बना देन लइका ल अफसर।
कहाँ पाँव दाई ददा के परत हे।

अजय अमृतांशु
भाटापारा, छत्तीसगढ़

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