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Monday 4 May 2020

ग़ज़ल-आशा देशमुख बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम

ग़ज़ल-आशा देशमुख
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122

जियाए नता ला जी महुरा गटक के।
चले सोज रद्दा गा रद्दा भटक के।

भरे हे खचाखच नही सीट खाली
बुलाये समे हा त जावय लटक के।

लदे डार आमा भरे हे बगीचा
तभो बेंदरा मन हा खाये झटक के।

न आगी दिखत हे न बिजली के खंभा।
जलन मा ये मनखे मरत हे चटक के।

अबड़ दान के मार शेखी बघारत
भरे भीड़ मा भीख देवय फटक के।

सुवारथ भरे हे करत हे दिखावा
सभा शोक मा देख रेंगय मटक के।

बली होय बैरी तभो झन डरावव
अपन बल दिखादे तें पउँरी पटक के।

हवा आय भारी बुझे वंश दीया
जिहाँ लाय नारी के चूँदी हटक के।

अबड़ डींग हाँके धरे नाम ज्ञानी।
सभा मा बुलाये त बोलय अटक के।

कलेचुप बइठव चढ़े हव अगासा
सितारा घलो तो गिरे हे छटक के।

करत हे सवारी सजे पालकी रथ
हूँमेलत हे भैंसा ले जाये पटक के।


आशा देशमुख

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