ग़ज़ल-आशा देशमुख
बहरे मुतकारिब मुसम्मन मक्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 122 12
अजब चाल मा अकबकासी लगे
गरम बात मा कँपकपासी लगे।
सबो बेंच के रे गए तँय शहर
फ़टे हाल होगे रोवासी लगे।
बड़े बात बोली लगत हे जबड़
रटे फोकटइहा उबासी लगे।
घुना खाय जिनगी मया के बिना
महल घर अटारी उदासी लगे।
कहूँ थोप देथे बुता काम तब
बिना मन लगन के उँघासी लगे।
अपन सुख गँवावत रहय रात दिन
ददा पूत बर अब खलासी लगे।
दिखे दानदाता शहर गाँव मा
अजब खेल आशा सियासी लगे।
आशा देशमुख
22 -5-2020
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