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Wednesday, 13 May 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
अरकान 122 122 122 122

अकेला म आबे बहुत मार खाबे।
कहूँ तँय बताबे बहुत मार खाबे। 

करे जेन मिहनत उही जाय आगू।
समे जब चुराबे बहुत मार खाबे।

नशा हर करे नाश जिनगी ल संगी।
जे माखुर चबाबे बहुत मार खाबे।

इहाँ नइ चले मास मदिरा समझ तँय।
धरे घर जे लाबे बहुत मार खाबे।

बिना तँय बड़े मन के आशीष पाये।
अपन घर बसाबे बहुत मार खाबे।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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