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Wednesday 6 May 2020

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम
फ़ऊलुन  फ़ऊलुन  फ़ऊलुन  फ़ऊलुन
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सुनौ बात संगी नशा नाश होथे ।
धरे साथ जे मौत के दास होथे ।।

बड़ा नीक लागे शुरू मंद दारू ।
इही बाद मा तो गला फाँस होथे ।।

पिये बेच दारू सकेले कमाई ।
इहाँ भूख परिवार उपवास होथे ।।

मिलाये नजर ना सके फेर सबसे ।
लुटे मान सम्मान उपहास होथे ।।

जरे बुद्धि काया करे खोखला तन ।
नशेड़ी तो मनखे जियत लाश होथे ।।

बुराई के जड़ बड़ भरे हे नशा मा ।
लड़ाई मचे घोर उदबास होथे ।।

गजानन्द पात्रे नशा दूर रहिबे ।
बड़ा कीमती जिंदगी सांस होथे ।।

गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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