गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
सुनौ बात संगी नशा नाश होथे ।
धरे साथ जे मौत के दास होथे ।।
बड़ा नीक लागे शुरू मंद दारू ।
इही बाद मा तो गला फाँस होथे ।।
पिये बेच दारू सकेले कमाई ।
इहाँ भूख परिवार उपवास होथे ।।
मिलाये नजर ना सके फेर सबसे ।
लुटे मान सम्मान उपहास होथे ।।
जरे बुद्धि काया करे खोखला तन ।
नशेड़ी तो मनखे जियत लाश होथे ।।
बुराई के जड़ बड़ भरे हे नशा मा ।
लड़ाई मचे घोर उदबास होथे ।।
गजानन्द पात्रे नशा दूर रहिबे ।
बड़ा कीमती जिंदगी सांस होथे ।।
गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
सुनौ बात संगी नशा नाश होथे ।
धरे साथ जे मौत के दास होथे ।।
बड़ा नीक लागे शुरू मंद दारू ।
इही बाद मा तो गला फाँस होथे ।।
पिये बेच दारू सकेले कमाई ।
इहाँ भूख परिवार उपवास होथे ।।
मिलाये नजर ना सके फेर सबसे ।
लुटे मान सम्मान उपहास होथे ।।
जरे बुद्धि काया करे खोखला तन ।
नशेड़ी तो मनखे जियत लाश होथे ।।
बुराई के जड़ बड़ भरे हे नशा मा ।
लड़ाई मचे घोर उदबास होथे ।।
गजानन्द पात्रे नशा दूर रहिबे ।
बड़ा कीमती जिंदगी सांस होथे ।।
गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
वाहहह!वाहहह!
ReplyDeleteवाह वाह
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