गजल-ज्ञानू
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
फ़ऊलुन
अरकान-122 122 122 122
कहाँ आज भाई भुलाये हवस रे
गज़ब मोह माया बढाये हवस रे
मिलय नइ दुबारा मनुज के जनम हा
अकारथ समय ला गवाये हवस रे
करम अउ धरम हा सुहावय नही मन
नशा पान मा धन लुटाये हवस रे
दया अउ मया बोल जाने कभू नइ
छिड़क घीव झगरा कराये हवस रे
भरोसा रिहिस 'ज्ञानु' मोला ग भारी
कहाँ काज कखरो बनाये हवस रे
ज्ञानु
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
फ़ऊलुन
अरकान-122 122 122 122
कहाँ आज भाई भुलाये हवस रे
गज़ब मोह माया बढाये हवस रे
मिलय नइ दुबारा मनुज के जनम हा
अकारथ समय ला गवाये हवस रे
करम अउ धरम हा सुहावय नही मन
नशा पान मा धन लुटाये हवस रे
दया अउ मया बोल जाने कभू नइ
छिड़क घीव झगरा कराये हवस रे
भरोसा रिहिस 'ज्ञानु' मोला ग भारी
कहाँ काज कखरो बनाये हवस रे
ज्ञानु
वाह वाह
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