ग़ज़ल--चोवा राम 'बादल '
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
उपर मा उठाके पटकथे अबड़ वो
कभू दान देके झटकथे अबड़ वो
फँसे जाल मा मनचला के वो तितली
कहाँ के कहाँ तो भटकथे अबड़ वो
तिली नइ लुए तैं करे चेत संगी
अजी देख लेबे चटकथे अबड़ वो
निंदे तैं नहीं मन के साँवा बदौरी
मरे के बखत मा खटकथे अबड़ वो
नदी हावे साँकुर छलक जाथे पानी
गिरे एको सरवर मटकथे अबड़ वो
बताथे सबो ला जहर होथे दारू
लुका के उही ला गटकथे अबड़ वो
बनत काम ला आन के जे बिगाड़य
समे आथे 'बादल' अटकथे अबड़ वो
गजलकार---चोवा राम 'बादल'
हथबंद
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
उपर मा उठाके पटकथे अबड़ वो
कभू दान देके झटकथे अबड़ वो
फँसे जाल मा मनचला के वो तितली
कहाँ के कहाँ तो भटकथे अबड़ वो
तिली नइ लुए तैं करे चेत संगी
अजी देख लेबे चटकथे अबड़ वो
निंदे तैं नहीं मन के साँवा बदौरी
मरे के बखत मा खटकथे अबड़ वो
नदी हावे साँकुर छलक जाथे पानी
गिरे एको सरवर मटकथे अबड़ वो
बताथे सबो ला जहर होथे दारू
लुका के उही ला गटकथे अबड़ वो
बनत काम ला आन के जे बिगाड़य
समे आथे 'बादल' अटकथे अबड़ वो
गजलकार---चोवा राम 'बादल'
हथबंद
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
वाहहहह!वाहह!
ReplyDeleteसुग्घर रचना ,बधाई
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