गजल- गजानन्द पात्रे
बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 122 12
कहाँ मोर छत्तीसगढ़ राज हा ।
नँदावत हवे जी सुमत साज हा ।।
परे खेत परिया सुखागे कुआँ ।
अकाली किसानी गिरे गाज हा ।।
बिछे जाल हे कारखाना बड़े ।
छिनागे हमर श्रम धरे काज हा ।।
बड़ा नीक लागे ददरिया मया ।
सुआ ताल पंथी के अंदाज हा ।।
नवा रोज फैशन जमाना दिखे ।
अपन ले बड़े के कहाँ लाज हा ।।
कुमत चाल परदेशिया मन चले ।
छिनागे हमर सुमता के ताज हा ।।
गढ़ौ राह कल बर गजानंद अब ।
कहाँ हे सुरक्षित हमर आज हा ।।
गजलकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 122 12
कहाँ मोर छत्तीसगढ़ राज हा ।
नँदावत हवे जी सुमत साज हा ।।
परे खेत परिया सुखागे कुआँ ।
अकाली किसानी गिरे गाज हा ।।
बिछे जाल हे कारखाना बड़े ।
छिनागे हमर श्रम धरे काज हा ।।
बड़ा नीक लागे ददरिया मया ।
सुआ ताल पंथी के अंदाज हा ।।
नवा रोज फैशन जमाना दिखे ।
अपन ले बड़े के कहाँ लाज हा ।।
कुमत चाल परदेशिया मन चले ।
छिनागे हमर सुमता के ताज हा ।।
गढ़ौ राह कल बर गजानंद अब ।
कहाँ हे सुरक्षित हमर आज हा ।।
गजलकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
No comments:
Post a Comment