गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
बिना मान देये कहाँ मान पाबे ।
बिना गुरु लखाये कहाँ ज्ञान पाबे ।।
समाये रही द्वेष मन भीतरी ता ।
सुमत भोर ला तैं कहाँ लान पाबे ।।
शरण धाम चारो ददा दाई गुरु के ।
जपे देव पथरा कहाँ ध्यान पाबे ।।
धरे राह तैं झूठ के तो कहूँ जी ।
बता फेर सीना कहाँ तान पाबे ।।
करौ दीन दुखिया के सेवा सदा जी ।
बड़े येखरे ले कहाँ दान पाबे ।।
धरे राह संगत बुराई चले तँय ।
भलाई मरम ला कहाँ जान पाबे ।।
गजानंद जग आज अँधरा बने हे ।
वचन सत्य खातिर कहाँ ठान पाबे ।।
गजलकार - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
बिना मान देये कहाँ मान पाबे ।
बिना गुरु लखाये कहाँ ज्ञान पाबे ।।
समाये रही द्वेष मन भीतरी ता ।
सुमत भोर ला तैं कहाँ लान पाबे ।।
शरण धाम चारो ददा दाई गुरु के ।
जपे देव पथरा कहाँ ध्यान पाबे ।।
धरे राह तैं झूठ के तो कहूँ जी ।
बता फेर सीना कहाँ तान पाबे ।।
करौ दीन दुखिया के सेवा सदा जी ।
बड़े येखरे ले कहाँ दान पाबे ।।
धरे राह संगत बुराई चले तँय ।
भलाई मरम ला कहाँ जान पाबे ।।
गजानंद जग आज अँधरा बने हे ।
वचन सत्य खातिर कहाँ ठान पाबे ।।
गजलकार - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
वाहहहह!वाहहह!
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