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Saturday 6 February 2021

ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*



सोन के चिरई उदास पंख हा कटात हे।

गीध के चिंया ला देख चोंच लफलफात हे।


काग बर सजाय थाल मोतियन रतन चुगे

मूंग मोठ छींत फेंक हंस ला खवात हे।


आज कल तो पूर्व मा भी पश्चिमी हवा चले

नाच गान मंच मा ये लाज हा उड़ात हे।


लाल लाल हे जमीन घाव हे हरा हरा

बैर के ये खेत मा मया अबड़ सुखात हे।


सात छेद हे तभो धरे हे राग बाँसुरी

एक ताल ढोल हा ढमक ढमक बजात हे।



आशा देशमुख

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