ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'
*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*
*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*
*1121 2122 1121 2122*
टुरा काय ये करत हे लुका पासथे जमाना।
धरे जाल फास नँगते सदा फाँसथे जमाना।
कभू भाय नइ गा कोनो मया बात मोर चिटको,
खड़े हो कुरा ससुर बन जला खाँसथे जमाना।
बने खूब आड़ बाधा हवे बाट मा अबड़ के,
कभू जाय टूट एमन बढ़ा ठाँसथे जमाना।
रुँधे हें कपट के काँटा लगे स्वार्थ के गा बारी,
हिँटे ना कभू रुँधानी जमा धाँसथे जमाना।
लुहा के मताय ठेनी करे खूब गा तमासा,
मजा बर बने गा कुकरा खड़े बासथे जमाना।
कभू तो मितान गाथे बने धुन मा गुनगुनाथे,
बढ़े बल बिचार मन के गिरा हाँसथे जमाना।
- मनीराम साहू 'मितान'
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