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Sunday, 7 February 2021

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


कहूँ ला सुहाये दारू कहूँ ला दही सुहाये।

कहूँ ला हाँ हाँ सुहाये कहूँ ला नही सुहाये।


हे सबे के सोच अलगे हे अलग सबे के आदत।

कहूँ हा गलत करत हे कहूँ ला सही सुहाये।


बने तन बदन हवे ता सबे चीज रास आथे।

जिया भीतरी भरे दुख नही ता कही सुहाये।


करे घाम जब गजब के तिपे चाम तब गजब के।

ता सबे ला छाँव भाये दही अउ मही सुहाये।


हाँ अमीर के मया मीत अमीर बर बने हे।

हे गरीब खैरझिटिया उहू ला वही सुहाये।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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