गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार
*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*
*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*
*212 1212 1212 1212*
थाह पाही वो भला का पीर रे किसान के ।
दाल रोटी ला बिसाके जेन खात हे दुकान के।।
खार मा तो खेत अउ तो घर जी नइये गाँव मा।
भाव तय उही करे किसान मन के धान के ।।
जेड प्लस सुरक्षा घेरे नेता मालदार ला।
देख कोनो मोल नइये आम जन के जान के।।
पल मा मासा पल मा तोला हो जथे जी नेता मन।
आज कोनो मोल नइये नेता के जुबान के।।
बूँद बूँद पानी बर मरत हवै किसान मन।
कारखाना बर खुले हे पानी रे बँधान के।।
दुर्गा शंकर ईजारदार
सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)
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