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Sunday, 14 February 2021

गजल


 *बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*

*1121 2122 1121 2122*


लमा हाथ सत धरम बर तभे जग मा नाँव मिलही।

लगा पेड़ ला सुमत के तभे सुख के छाँव मिलही।


लगे भाँय भाँय अँगना गली खेत खार सुन्ना।

सजे मोर आँख सपना कहाँ अब वो गाँव मिलही।


चले तोर जोर जाँगर हवे तब तलक पुछाड़ी।

धरे आय तन बुढ़ापा तहाँ हाँव हाँव मिलही।


बिछे जाल छल कपट के इहाँ देख ताक चलबे।

रचे कूटनीति के अब घरों घर मा ठाँव मिलही।


बचा आज तैं गजानंद अपन आप ला इहाँ जी।

कहे जेन ला अपन तैं सदा ओखरे से घाँव मिलही। 


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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