गजल-इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*
*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*
*1121 2122 1121 2122*
नवाँ माथ गुरु चरण मा सुखी तोर द्वार होही।
फँसे बीच नाँव जिनगी कृपा गुरु पा पार होही।
रखे दूर गुरु बुराई जला जोत ज्ञान हिरदे।
खड़े ढाल बन बिपत मा जिहाँ सच पुकार होही।
सहीं राह गुरु दिखाये मिले बड़ नसीब ले वो।
सजे मन घड़ा बरोबर पड़े हाथ गुरु कुम्हार होही।
पढ़ा पाठ एकता गुरु कहे संग संग रइहौ।
रहे मान शिष्य गुरु के इही बात सार होही।
जपे नाम ला गजानंद सदा अपन तो गुरु के।
मिले तोर ज्ञान के जनमो जनम उधार होही।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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