गजल- अजय अमृतांशु
बहरे कामिल मुसम्मन सालिममुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
11212 11212 11212 11212
कभू बात करबे बने समझ के निकालबे गा जुबान ले।
हवे बात जे बने काम के तहूँ पूछ ले जी सियान ले।
दगा दे के तैं कहाँ जाबे जी हवे दुनिया गोल बताँव जी।
भला अउ बुरा मिले एक दिन दुनो के नतीजा हा मान ले।
भले काम बर सबो आव आघु इही मा सार हवे सुनव।
बने काम के जी नतीजा होथे बने ये बात ला जान ले।
हे अकेला चलना ये रद्दा जिनगी के काँटा ले भरे जान ले।
बढ़ा के कदम,नहीं रुकना हे,भले आँधी आय ये ठान ले।
मिले ज्ञान हा जिहाँ भी बने धरे कर "अजय" सबो सार ला।
कहाँ ले बिसाबे तहीं बता मिले ये कभू ना दुकान ले।
अजय अमृतांशु
भाटापारा ( छत्तीसगढ़ )
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