गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार
*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*
*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*
*1121 2122 1121 2122*
कभू खेत सुक्खा पड़गे कभू होगे पानी पानी।
कहे गे हे ओकरे बर जुआ काम तो किसानी।।
गिरे हपटे मन के संगी सुनौ हाथ धर चलौ गा।
पड़े जे अलग थलग रे बदौ संग मा मितानी।।
हवै दुनिया तोर मालिक बड़े तो अजब गजब के।
हवै काकरो महल तो कहूँ नइये परवा छानी।।
रहौ भाई भाई मिलके रखे का हवव अलग मा।
अरे जायदाद संगे मया होथे चानी चानी।।
जे जवानी देश हित बर नहीं काम जेन आवय।।
ले जनम हवै अभिरथा हे का काम के जवानी।।
दुर्गा शंकर ईजारदार
सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)
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