🌹 ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹
*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*
*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*
*1121 2122 1121 2122*
हवे तोर गोठ भारी कहूँ कर समात नइहे।
ये उधार के परोसा बने से खवात नइहे।
बड़े घर बिहाव माढ़े हे अबड़ सजाय मंडप
ये बनाय भोग छप्पन तभो दार भात नइहे।
ये लुकाय बाँसुरी हा बजे ढोल पोल बाजा
का लिखाय गीत कैसे एको ठन सुनात नइहे।
हवे लोभ के कुटुम्बी धरे भोग के खजाना
ये रखाय चीज कतको तभो ले अघात नइहे।
दिखे पाप के अँधेरा ये सुरुज कहाँ लुकाये
वो कहाय नाम पूनम ये अँजोर रात नइहे।
आशा देशमुख
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