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Thursday 11 February 2021

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल-  ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मजाइफ़ [दोगुन]

फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन 

1121 2122 1121 2122


लहू मा जी तोर मारत हे अबड़ उबाल काबर 

कुछू जब मिलय नही रोज करे बवाल काबर 


सुने हँव के बात मा तोर हवय अबड़ के दम जब

करे नइ कुछू इहाँ आज तलक कमाल काबर 


दिखा दव विकास ऊपर म विकास जब करे हव

दिखे नइ सुधार अउ  जस के ग तस हे हाल काबर 


सही ताय कतको ल नाम गरीब के इहाँ बस 

बना योजना तुमन लेव डकार माल काबर 


का बताँव बढ़ जथे 'ज्ञानु' दरद हा देखथँव ये

इहाँ अपने ह खिंचै अपने के रोज खाल काबर 


ज्ञानु

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