ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*
*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*
*212 1212 1212 1212*
बड़ मतात हे गिधान मन बवाल देवता।
पाँख झट कतरके पिंजरा मा डाल देवता।
पथरा जइसे होगे मनखे पथरा बन तहूँ हवस।
हाल देख तैं जगत के अब तो हाल देवता।
मार काट होत हावे सोत हावे सत सुमत।
मनखे मन ला मनखे मन बनाय ढाल देवता।
टेक गे महल अटार गाँव गे शहर लहुट।
बाग बन कटाय अउ अँटाय ताल देवता।
झूठ बाढ़गे गजब अउ लूट बाढ़गे गजब।
चोर ढोर के नँगत के पो दे गाल देवता।
बात बानी हे जहर उठे विकार जस लहर।
लागथे अब आत हावे सबके काल देवता।
लाज राखे बर धरम के आबे के नही बता।
दे हुँकारू है हाँ नही मा हे सवाल देवता।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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