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Thursday, 11 February 2021

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


सही बाट मा‌ रखत पग जगा भाग तैं अपन गा।

लिहीं नाँव तोर सरलग जगा भाग तैं अपन गा।


कहाँ काम के हवय जी धरे तोर धन खजाना,

मया मोह सब हवँय ठग जगा भाग तैं अपन गा।


हें बिरान गा सबो झन नता गोत तोर हें जे,

प्रभू नाम बस हवय सग जगा भाग तैं अपन गा।


दिखे देह हा भले जी खरा सोन कस चमक मा,

सदा रइही ये कहाँ दग जगा भाग तैं अपन गा।


हवे तोर मूड़ भाई चढे़ पाप हा नँगत के,

बढ़ा पाँव ला धरम डग जगा भाग तैं अपन गा।


तहूँ जान गा दुसर दुख खुशी बाँट ले ससन भर,

हवे शांति हा इही बग जगा भाग तैं अपन गा।


अढ़ा हे मितान सिरतो कथे बात फेर खाँटी,

बना चाल खुद के जगमग जगा भाग तैं अपन गा।


- मनीराम साहू 'मितान'

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