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Sunday, 14 February 2021

मुकम्मल ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 मुकम्मल ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


हवे पार वो लगइया तें श्री राम के भजन‌ कर।

इही नाँव हे तरइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


जे हा हाँस के गइस बन हरे बर सबन‌ के पीरा,

ददा के कहे मनइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


नदी के करार पहुँचिस चढ़े नाव‌ के बहाना,

गुहा भाग के बनइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


हवे एक जात मनखे इही बात ला बताइस,

जुठा बेर के खवइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


बना के मितान मरकट भला काम जे करे हे,

सदा दोसती निभइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


लिखे नाँव ले उफल गय बड़े ले बड़े वो पथरा,

सदा सत्य शिव जपइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


कटा मूड़ ला जी रावन तरे जात कुल के सुद्धा,

मनी मन सदा बसइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


- मनीराम साहू 'मितान'

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