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Thursday, 11 February 2021

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन

212  212  212  212


देश के रक्षा बर मरना हे जान ले। 

बैरी आघू खड़े तोप ला तान ले। 


मूँड़ी कटही भले फेर झुकही नहीं।

ये तिरंगा सदा फहरै जी शान ले। 


सीमा के रक्षा बर मैं अडिग रहिथौं जी।

देश भीतर के बैरी तैं पहिचान ले। 


चेत जावय अभी जेन गद्दार हे। 

भूल के झन कभू खेलहू आन ले।


घेरी बेरी मचावत हे उत्पात उन।

आज बैरी ला देबो सबक ठान ले।


जीत वोकर हमेशा ही होथे"अजय"।

जेन लड़थे अखड़ के जी तूफान ले।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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