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Thursday, 11 February 2021

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]


फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन


1121 2122 1121 2122


जभे मोर मन से लिखहूँ  तभे काम मोर होही।  

रहे भाव जब भराये तभे नाम मोर होही। 


ये कहाँ फँसे हवँव मँय,बँधे मोह माया बंधन।

करे बर परे तपस्या तभे राम मोर होही। 


दही बर नचाये गोपी त दिखाय नाच कान्हा। 

मया मा रिझाहुँ मँय हर तभे श्याम मोर होही।


करे जेन हर दिखावा वो कहाँ चले सफर मा। 

रमे मन जहाँ रमाये तभे धाम मोर होही।


परे हे डगर डगर मा रहे सिरतो नइ पुछारी।

सजे राह मा जे आहूँ तभे दाम मोर होही। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

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