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Saturday 6 February 2021

गजल - अजय अमृतांशु

 गजल - अजय अमृतांशु 


बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून

फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122  1212  22 


हाल बड़ हे  बुरा  बताना हे।

आज जिनगी के का ठिकाना हे।


काय धर के जगत मा आये हस। 

काला धरबे कहाँ ले जाना हे ।


चार दिन रहना हे रहव सुख से।

कोन ला घर इहाँ बसाना हे । 


बाँट के सुख भुलाव दुख ला जी।

दुख के बादर सबो छँटाना हे। 


माटी मा मिलथे माटी के काया। 

खोना हे बस इहाँ का पाना हे। 


भाई भाई लड़त हवव काबर। 

अब लगे आगी ला बुझाना हे। 


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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