गजल-अरुण कुमार निगम
*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*
*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*
*1121 2122 1121 2122*
हवे चार दिन के जिनगी आ मया के गीत गा ले
बना झन महल अटरिया सबो दिल मा घर बसा ले।
ये महल न संग जाही तहूँ जानथस ये सच ला
लिही नाम तोर दुनिया मया-बंसरी बजा ले।
दया ले बड़े धरम का? मया ले बड़े करम का?
इहाँ दान कर मया के उहाँ बर जघा बना ले।
ये नशा नरक के रद्दा सबो काम ला बिगाड़य
तहूँ छोड़ दे नशा अब दही दूध घीव खा ले।
कभू हारथे "अरुण" तो कभू जीत जाथे बाजी
ये जगत जुआ असन हे तहूँ भाग आजमा ले।
*अरुण कुमार निगम*
ये बहर मा कुछ फिल्मी गीत
(1) मिली खाक में मोहब्बत जला दिल का आशियाना
(2) जिसे तू क़ुबूल कर ले, वो अदा कहाँ से लाऊँ?
(3) मुझे इश्क़ है तुझी से मेरी जान ए जिंदगानी
(4) जो खुशी से चोट खाए वो जिगर कहाँ से लाऊँ
(5) है कली कली के लब पे तेरे हुश्न का फसाना
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