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Thursday, 11 February 2021

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]

फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन

1121 2122 1121 2122


मजा हे बताँव ओखर कहाँ वो बतात हावय।

ददा हे कमात वो घर मा हे बइठे खात हावय। 


ददा तरसे पानी पीये,कहाँ तिर मा बेटा आवय। 

परे हे कुकुर के पाछू उही ला खवात हावय। 


हवे भारी सेना भारत के सबो ये जान डारिन। 

तभे दुनिया गुण ला भारत के अबड़ जी गात हावय। 


धनी गे हे जब ले परदेस बताय काला वोहा।

रो धो के ये जिनगी बीतत ले दे के पहात हावय। 


का भरोसा साँस के थम जही ये"अजय"कभू भी।

करे राह काम पुन के इही सार बात हावय। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा ( छत्तीसगढ़ )

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