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Wednesday, 13 May 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

अरकान-122 122 122 122 

खजाना के खनखन, धरे के धरे हे।
वो मस्ती वो बनठन, धरे के धरे हे।।

जरत हे धरा हा, बरे बन हरा हा।
बिना मेघ के घन, धरे के धरे हे।।

समय मा विपत के, कहाँ कोई आइस।
जमे जोरे जन धन, धरे के धरे हे।।

नही नीर नरमी, करे खूब गरमी।
खड़े झाड़ अउ बन,धरे के धरे हे।

गिराये समय हा, उठाये समय हा।
तने तोर तन मन, धरे के धरे हे।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा

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