Total Pageviews

Saturday, 2 May 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

अरकान-122 122 122 122 

गलत संग धरके मया चाँट झन रे।
ददा दाई भाई ठिहा बाँट झन रे।।

इहाँ ले हवै एक दिन सबला जाना।
नरी बर अपन डोर तैं आँट झन रे।।

जतन रुक्ख राई घटा दुक्ख भाई।
अपन स्वार्थ बर पेड़ तैं काँट झन रे।

सबे दिन रहे नइ ये काया जगत मा।
गरब बैर इरखा कभू छाँट झन रे।।

तहूँ हा करे हस गजब मौज मस्ती।
हरे नान्हे लइका फकत डाँट झन रे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

1 comment:

गजल

 गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...