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Monday, 4 May 2020

गजल-मनी राम साहू मितान

गजल-मनी राम साहू मितान

बहरे मुतकारिब मुद्दसस सालिम
122  122  122

चिटिक देख इन्सान बन के।
कृपालू दयावान बन के।

मजा बड़ हवै देख पर सुख,
दिखा दे ग गुनवान बन के।

बिगाड़त हवै जी अशिक्षा,
समा जा मगज ज्ञान बन के।

मिटा दे बढ़त भूख आगी,
उपज खेत तैं धान बन के।

बढ़ा ले मया सार सब ले,
रिझा बाँसुरी तान बन के।

हवै भार सब सिर म तोरे,
अभर पार्थ के बान बन के।

अपन हें सबो आन नोहयँ,
भुला झन ग अनजान बन के।

मनीराम साहू 'मितान'

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