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Monday, 4 May 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

बड़े के कहे मान गंगा नहाले।
तरे जिंदगी जान गंगा नहाले।

बटोरत रहे जिंदगी भर खजाना। 
समे आय कर दान गंगा नहाले।

चलत राह राही थिरा ले तनिक जी।
भजन के करत पान गंगा नहाले।

कहाँ धाम चारो भटकबे कका तँय।
बबा के रखे ध्यान गंगा नहा ले।

पढ़े जा पढ़े जा ये जिनगी गढ़े जा।
त डुबकी लगा ज्ञान गंगा नहाले।

चढ़े चार काँधा चले जब मुसाफिर।
सँगे जाय शमसान गंगा नहाले।

धरम के डगर मा करत काम नेकी।
बना अपनो पहिचान गंगा नहाले।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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