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Friday, 15 May 2020

गजल-ज्ञानू

गजल-ज्ञानू

बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन  फ़ऊलुन  फ़ऊलुन
फ़ऊलुन
अरकान-122 122 122 122

कहाँ आज भाई भुलाये हवस रे
गज़ब मोह माया बढाये हवस रे

मिलय नइ दुबारा मनुज के जनम हा
अकारथ समय ला गवाये हवस रे

करम अउ धरम हा सुहावय नही मन
नशा पान मा धन लुटाये हवस रे

दया अउ मया बोल जाने कभू नइ
छिड़क घीव झगरा कराये हवस रे

भरोसा रिहिस  'ज्ञानु' मोला ग भारी
कहाँ काज कखरो बनाये हवस रे

ज्ञानु

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