*गज़ल -चोवा राम 'बादल*
*बहरे रजज़ मुस्समन सालिम*
*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*
*2212 2212 2212 2212*
अँधियार ला काबर सकेले मोटरा कस जोर के
भर ले तहूँ अंजोर ला अज्ञान बँधना छोर के
दिन रात के चक्का चलत रहिथे बिघन आथे अबड़
छोटे से जरई हा निकल जाथे ये धरती फोर के
लूटत हवै सरेआम रोकै आज वोला कोन हा
डरगे हवैं राही सबो हथियार देखे चोर के
उड़थे हवा मा पाँव धरती मा कभू राखय नहीं
प्रेमी सहीं वो कहिथे ला देहूँ मैं चंदा टोर के
मिरचा ला छोटे जान के तैं हा बिकट के चाब झन
परही अभी पानी पिये ला कसके शक्कर घोर के
बसगे हवै चितचोर करिया आँखी मा वो मोहना
मुरली बजइया जे लगाथे माथ पाँखी मोर के
धुर्रा उड़त हे बाढ़गे हाबय भयानक ताव हा
भुइँया जुड़ाही आज 'बादल' तैं बरसना झोर के
चोवा राम 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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