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Sunday, 22 November 2020

ग़ज़ल-आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल-आशा देशमुख*


*बहरे रजज़ मुस्समन सालिम*

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन  *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

*2212  2212  2212  2212*



पानी हवा मा हे प्रदूषण प्राण कइसे बाँचही।

अपने उघारे देह तब सम्मान कइसे बाँचही।


पथरा लदागे खेत मा तरिया पटाव त हे घलो

नइहे चरागन गाँव मा दैहान कइसे बाँचही।


शिक्षा बने व्यापार अब लक्ष्मी तिजोरी में भरे

ज्ञानी धरे पोटार के तब ज्ञान कइसे बाँचही।


चोरी करत हे अंग के कई देवता बनके इहाँ

बोली लगे पूजा दया तब दान कइसे बाँचही।


गाड़ी सुवारथ के चढे रिश्ता नता मन छूटगे

रौंदत हवय लालच गरब मुस्कान कइसे बाँचही।


लालच अतिक अब बाढ़गे छोड़े नही तन के तिखा

लकड़ी बिना तरसे चिता शमशान कइसे बाँचही।


किंजरत हवय शैतान मन सेना सिपाही चुप हवय

आशा अबड़ सोचत हवय भगवान कइसे बाँचही।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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