1,गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"
*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*
*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*
*2212 2212 2212*
चूल्हा ले उठ सब खूँट छाये हे धुँवा।
आशा भुखाये मा जगाये हे धुँवा।1
रतिहा जलिस या फेर काँपिस जाड़ मा।
बन बाट ला बिहना चुराये हे धुँवा।2
बड़ कोहरा बिहना दिखे जड़काल मा।
घर बाट ला मुख मा दबाये हे धुँवा।3
सिगरेट गाँजा बीड़ी ले सबदिन निकल।
तनमन के बड़ बारा बजाये हे धुँवा।4
चिमनी ले निकले ता करे अब्बड़ गरब।
आगास ला सिर मा उँचाये हे धुँवा।5
मिरचा निमक बारे भरम झारे मनुष।
हुमधूप के देवन ला भाये हे धुँवा।6
चल खैरझिटिया छोड़ के चिंता फिकर।
उप्पर डहर सबदिन उड़ाये हे धुँवा।7
जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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