गजल- मनीराम साहू मितान
बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212
घातक अबड़ मॅइता हवय।
तैं जान ये खॅइता हवय।
मनखे सुखी हाबय उही,
जेकर करा सॅइता हवय।
सुख पाय बर दुख हे धरे,
घिरलत बबा चइता हवय।
बाॅटे हवॅय क्षतिपूर्ति उॅन,
बस नाॅव के गॅइता हवय।
सब मा रथे आगू कका,
अबड़ेच खरबइता हवय।
हे पाप बड़ जग मा मनी,
जग मा सहज हइता हवय।
- मनीराम साहू मितान
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