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Friday 6 November 2020

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22                 


सोज रसता म चले आ जाबे। 

देख के साँझ ढले आ जाबे।  


कोयली कूक अभी पारत हे। 

जइसे ही आम फले आ जाबे।  


तोर रसता ल निहारत रइहँव।

रात के दीप जले आ जाबे।   


घाम के बेर कहूँ आना हो।

आम के छाँव तले आ जाबे। 


मोर हालत म दया झन करबे।

छाती मा मूंग दले आ जाबे।


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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