ग़ज़ल --- चोवा राम 'बादल'
*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*
फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन
2122 1122 22
हे कहाँ ठहरे समे हा संगी
बान तरकस ले चले हा संगी
गीत ला झोंक मिलाके स्वर ला
नइ सुहावय तो कटे हा संगी
जीव लेही असो ये कोरोना
घेंच मा डोरी कसे हा संगी
बंद कब होही बतावयँ कोनो
लूटमारी ये मचे हा संगी
मूँह ताकत हे गरीबा बइठे
लूट खावत हे बड़े हा संगी
मर लगाये तैं हवस तो अँगठा
नइ मिलै गहना धरे हा संगी
सोच 'बादल' तैं अहम झन करबे
टूटथे पेड़ तने हा संगी
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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