गजल-अरुणकुमार निगम
*बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़*
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 212
पद रहिस पावर रहिस चमचा रहिस।
पलपलावत हाथ मा पइसा रहिस।
घर मा तुलसी के सुघर पौधा रहिस
वो जमाना मा कतिक एका रहिस।
सोन कस चमकय पसीना माथ
मा
गोड़ मा चन्दन असन धुर्रा रहिस।
खोद के देखे हवँव मँय डोंगरी
का बतावँव खाल्हे मा मुसुवा रहिस।
बाँटथव दारू-रुपैया गाँव मा
का तुँहर घर सोन के मटका रहिस।
लूट के चल दिस चिरैया सोन के
वो मया के नाम मा धोखा रहिस।
कर भरोसा हार गे घर-द्वार ला
लोग कहिथें ये "अरुण" बइहा रहिस।
*अरुण कुमार निगम*
No comments:
Post a Comment