गजल- मनीराम साहू मितान
बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन
फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन
2122 1122 22
गोठ एको के ठिकाना नइ हे।
फोकला हे सबो दाना नइ हे।
राॅधथे जी बरा मुॅहू मा अबड़े,
जेब एको धरे आना नइ हे।
गोठ बनकत के कहाॅ धरथे जी,
सच्च भलई के जमाना नइ हे।
हें भुले झार अपन करतब ला,
अब वो संस्कार पुराना नइ हे।
सुन लिखय दीन रपट ला लउहे,
राज अइसन बने थाना नइ हे।
बोल करुवात हे अब मनखे के,
नीक कस एक ठो हाना नइ हे।
हे कहत आज मनी मोहर ला,
छाप पयहा के लगाना नइ हे।
- मनीराम साहू 'मितान'
No comments:
Post a Comment