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Sunday 29 November 2020

गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ,गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


खुद गल अरोये हार ता का काम के।

माँगे मिले प्रुस्कार ता का काम के।1


जल बर ललाये खेत बन अउ बाग हा।

बोहय गली मा धार ता का काम के।2


अँटियात हस अब्बड़ रतन धन जोड़ के।

नइहे सखा दू चार ता का काम के।3


कइथे सबो मन ले ही जीत अउ हार हे।

यदि बइठे हस मन मार ता का काम के।4


कर खैरझिटिया कुछु अपन दम मा तहूँ।

दूसर लगाये पार  ता का काम के।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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