Total Pageviews

Friday 6 November 2020

गजल-मनीराम साहू

गजल-मनीराम साहू

 बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22   


काज उपकार भुलावव झन गा।

मुॅह सुवारथ मा लुकावव झन गा।


खूब हे मोल मया के जानव,

गोठ करुवाय सुनावव झन गा।


मूड़ ले भार रहव‌ जी जागत,

लाय मन‌ ढेर उॅघावव झन गा।


आग अंतस मा रहय माटी हित,

मिल रखव‌ बार बुझावव झन गा।


जब हवय हाथ बना दव कारज,

आज धॅय काल घुमावव झन‌ गा।


होय बढ़वार मनुसता के नित,

फोकटे मार सुतावव झन गा।


फेंक दव कोड़ मनी सॅग मिल के,

बैर के कोठ उठावव‌ झन गा।


- मनीराम साहू‌ 'मितान'

No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...